परस्य दण्डं नोद्यच्छेत्क्रुद्धो नैनं निपातयेत् । अन्यत्र पुत्राच्छिष्याद्वा शिष्ट्यर्थं ताडयेत्तु तौ

. पुत्र और शिष्य से भिन्न अन्य किसी व्यक्ति पर दण्डा न उठाये अर्थात् दण्डे से मारे और क्रोधित होकर भी किसी को न मारे वध न करे, केवल उन – पुत्र और शिष्य को शिक्षा देने के लिये ही ताड़ना करे ।

‘‘परन्तु माता, पिता तथा अध्यापक लोग ईष्या, द्वेष से ताड़न न करें किन्तु ऊपर से भयप्रदान और भीतर से कृपादृष्टि रखें ।’’

(स० प्र० द्वितीय समु०)

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