गृहस्थों के लिये सतोमुणवर्धक व्रत –
. गृहस्थ कभी किसी दुष्ट के प्रसंग से द्रव्यसंचय न करे न विरूद्ध कर्म से न विद्यमान पदार्थ होते हुए उनको गुप्त रखके अथवा दूसरे से छल करके और चाहे कितना ही दुःख पड़े तदपि अधर्म से द्रव्यसंचय कभी न करे ।
(सं० वि० गृहाश्रम वि०)