अतोऽन्यतमया वृत्त्या जीवंस्तु स्नातको द्विजः । स्वर्गायुष्ययशस्यानि व्रताणीमानि धारयेत् ।

इसलिए स्नातक गृहस्थी द्विज अपेक्षाकृत किसी श्रेष्ठ आजीविका से जीवन निर्वाह करते हुए सुख, आयु और यश देने वाले इन व्रतों को धारण करे -।

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