अमावास्यां अष्टमीं च पौर्णमासीं चतुर्दशीम् । ब्रह्मचारी भवेन्नित्यं अप्यृतौ स्नातको द्विजः

गृहस्थ द्विज को चाहिये कि वह ऋतुकाल होते हुए भी अमावस्या, अष्टमी, पूर्णिमा और चतुर्दशी के दिन ब्रह्मचारी रहे ।

‘‘जब ऋतुदान देना हो तब पर्व अर्थात् जो उन ऋतुदान १६ दिनों में पौर्णमासी, अमावस्या, चतुर्दशी वा अष्टमी आवे उसको छोड़ देवें । इनमें स्त्री पुरूष रतिक्रिया कभी न करें ।’’

(संस्कारविधि गर्भादान संस्कार ऋतुदान काल प्रकरण)

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