कृत्वैतद्बलिकर्मैवं अतिथिं पूर्वं आशयेत् । भिक्षां च भिक्षवे दद्याद्विधिवद्ब्रह्मचारिणे । ।

अतिथियज्ञ का विधान –

उपर्युक्त (३।८४-९२) बलिवैश्वदेव यज्ञ करके पहले अतिथि को भोजन खिलाये तथा भिक्षा के लिए आये हुए ब्रह्मचारी के लिए विधिपूर्वक भिक्षा देवे ।

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