उच्छीर्षके श्रियै कुर्याद्भद्रकाल्यै च पादतः । ब्रह्मवास्तोष्पतिभ्यां तु वास्तुमध्ये बलिं हरेत् ।

. सबके द्वारा सेव्य परमात्मा की सेवा से राज्यश्री अथवा लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये (‘ओं श्रियै नमः’ से) ईशान कोण की ओर और परमात्मा की कल्याणकारी शक्ति की प्राप्ति के लिए (‘ओं भद्रकाल्यै नमः’ से) पृष्ठभाग अर्थात् नैर्ऋत्य कोण की ओर बलिभाग रखे और ब्रह्म – वेदविद्या की प्राप्ति के लिए वेदविद्या के दाता परमात्मा के लिए, वास्तोषपतिगृहसम्बन्धी पदार्थों के दाता ईश्वर की सहायता के लिए (‘ओं ब्रह्मपतये नमः’ ‘ओं वास्तुपतये नमः’ इन से) घर के मध्यभाग में बलिभाग रखे ।

‘‘श्रियै नमः । भद्रकाल्यै नमः । ब्रह्मपतये नमः । वास्तुपतये नमः ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समुल्लास)

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