असपिण्डा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः । सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने

विवाह – योग्य कन्या

जो स्त्री माता की छह पीढ़ी और पिता के गोत्र की न हो वही द्विजों के लिए विवाह करने में उत्तम है ।

(सं० वि० विवाह सं०)

 

‘‘जो कन्या माता के कुछ की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो उस कन्या से विवाह करना उचित है ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

विवाह में त्याज्य कुल –

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