दैवोढाजः सुतश्चैव सप्त सप्त परावरान् । आर्षोढाजः सुतस्त्रींस्त्रीन्षट्षट्कायोढजः सुतः ।

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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