जो व्यक्ति केवल अपना पेट भरने के लिए ही भोजन पकाता है वह केवल पाप को खाता है अर्थात् इस प्रवृत्ति से स्वार्थ आदि पापभावना ही बढ़ती है यह उपर्युक्त यज्ञों से शेष भोजन ही सज्जनों का अन्न माना गया है ।
जो व्यक्ति केवल अपना पेट भरने के लिए ही भोजन पकाता है वह केवल पाप को खाता है अर्थात् इस प्रवृत्ति से स्वार्थ आदि पापभावना ही बढ़ती है यह उपर्युक्त यज्ञों से शेष भोजन ही सज्जनों का अन्न माना गया है ।