जब गृहस्थ के समीप अतिथि आवें तब आसन, निवास शय्या, पश्चात्गमन और समीप में बैठना आदि सत्कार जैसे का वैसा अर्थात् उत्तम का उत्तम, मध्यम का मध्यम और निकृष्ट का निकृष्ट करे, ऐसा न हो कि कभी न समझें ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
जब गृहस्थ के समीप अतिथि आवें तब आसन, निवास शय्या, पश्चात्गमन और समीप में बैठना आदि सत्कार जैसे का वैसा अर्थात् उत्तम का उत्तम, मध्यम का मध्यम और निकृष्ट का निकृष्ट करे, ऐसा न हो कि कभी न समझें ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)