न वै स्वयं तदश्नीयादतिथिं यन्न भोजयेत् । धन्यं यशस्यं आयुष्यं स्वर्ग्यं वातिथिपूजनम्

जिस पदार्थ को अतिथि को नहीं खिलावे उसे स्वयं भी न खावें, अभिप्राय यह है कि जैसा स्वयं भोजन करें वैसा ही अतिथि को भी दे अतिथि का सत्कार करना धन, यश, आयु और सुख को देने और बढ़ाने वाला है ।

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