एकरात्रं तु निवसन्नतिथिर्ब्राह्मणः स्मृतः । अनित्यं हि स्थितो यस्मात्तस्मादतिथिरुच्यते ।

अतिथि का लक्षण –

विद्वान् व्यक्ति जो एक ही रात्रि तक पराये घर में रहे तो उसे अतिथि कहा गया है क्यों कि जिस कारण से वह नित्य नहीं ठहरता है अथवा जिसका आना अनिश्चित होता है इसी कारण से उसे अतिथि कहा जाता है ।

‘‘जिसके आगमन की कोई नियत तिथि न हो और स्थिति भी जिसकी अनियत हो, वह अतिथि कहलाता है । अतिथियज्ञ का अधिकारी वही है, जो विद्वान् हो एवं जिसका आना, जाना और ठहरना अनियत हो, वह चाहे किसी वर्ण का हो उसकी सेवा करना यह एक श्रेष्ठ कर्म है ।’’

(पू० प्र० १४३)

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