तृणानि भूमिरुदकं वाक्चतुर्थी च सूनृता । एतान्यपि सतां गेहे नोच्छिद्यन्ते कदा चन

अतिथियज्ञ का विधान

बैठने के लिए आसन (भूमिः) बैठने या सोने के लिए स्थान पानी और सत्कारयुक्त मीठी वाणी सत्कार करने की ये बातें या वस्तुएं तो श्रेष्ठ – सभ्य व्यक्तियों के घर में कभी भी नष्ट नहीं होती अर्थात् श्रेष्ठ – सभ्य व्यक्ति इनके द्वारा तो अवश्य ही सत्कार करते हैं ।

 

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