(२।९७ में विहित प्रक्रिया पूरी होने के बाद फिर) अभिवादने अभिवादन में स्वस्य नाम्नः अन्ते अपना नाम बताने के पश्चात् ‘भोः’ शब्दं कीर्तयेत् ‘भोः’ यह शब्द लगाये हि क्यों कि ऋषिभिः ऋषियों ने भोभावः नाम्तां स्वरूपभाव स्मृतः ‘भोः’ के अभिप्राय को नामों के स्वरूप का द्योतक ही माना है अर्थात् ‘भोः’ संबोधन के उच्चारण से ही नाम का अन्तर्भाव स्वतः हो जाता है । जैसे – ‘‘अभिवादये अहं देवदत्तः ‘भोः’