ऊर्ध्वं प्राणा ह्युत्क्रामन्ति यूनः स्थविर आयति । प्रत्युत्थानाभिवादाभ्यां पुनस्तान्प्रतिपद्यते ।

स्थविरे, आयति विद्या, पद, आयु आदि में बड़ों के आने पर यूनः प्राणाः छोटों के प्राण उत्क्रामन्ति ऊपर को उभरते – से लगते हैं अर्थात् प्राणों में घबराहट – सी उत्पन्न होने लगती है हि किन्तु प्रत्युत्थाय – अभिवादाभ्याम् उठने और नमस्कार करने से पुनः फिर से तान् प्रतिपद्यते शिष्य प्राणों की सामान्य – स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त कर लेता है अर्थात् प्राणों की घबराहट और उभराव दूर हो जाते हैं ।

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