अधर्मेण च यः प्राह यश्चाधर्मेण पृच्छति । तयोरन्यतरः प्रैति विद्वेषं वाधिगच्छति ।

. ‘‘यः जो अधर्मेण अन्याय, पक्षपात, असत्य का ग्रहण, सत्य का परित्याग, हठ, दुराग्रह ………………इत्यादि अधर्म कर्म से युक्त होकर छल – कपट से पृच्छति पूछता है च और यः जो अधर्मेण पूर्वोक्त प्रकार से प्राह उत्तर देता है , ऐसे व्यवहार में विद्वान् मनुष्य को योग्य है कि न उससे पूछे और न उसको उत्तर देवे । जो ऐसा नहीं करता तो तर्योः अन्यतरः प्रैति पूछने वा उत्तर देने वाले दोनों में से एक मर जाता है अर्थात् निन्दित होता है । वा अथवा विद्वेषम् अत्यन्त विरोध को अधि गच्छति प्राप्त होकर दोनों दुःखी होते हैं ।’’

(द० ल० भ्र० पृ० ३४७)

मर जाने से अभिप्राय यह भी है कि बिना उत्तर दिये सम्बन्ध तोड़कर चले जाना । यह स्वाभाविक ही है, कि जब कोई दुर्भावना से पूछता या उत्तर देता है तो उनमें से कोई एक व्यक्ति किनारा कर लेता है । यदि ऐसा नहीं करते तो उनसे दूसरी अवस्था विवाद और विरोध की आ जाती है ।

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