मङ्गल्यं ब्राह्मणस्य स्यात्क्षत्रियस्य बलान्वितम् । वैश्यस्य धनसंयुक्तं शूद्रस्य तु जुगुप्सितम् ।

ब्राह्मणस्य मंगल्यं स्यात् ब्राह्मण का नाम शुभत्व – श्रेष्ठत्व भावबोधक शब्दों से जैसे – ब्रह्मा, विष्णु, मनु, शिव, अग्नि, वायु, रवि, आदि रखना चाहिए क्षत्रियस्य क्षत्रिय का बलान्वितम् बल – पराक्रम – भावबोधक शब्दों से जैसे – इन्द्र, भीष्म, सुयोधन, नरेश, जयेन्द्र, युधिष्ठिर आदि वैश्यस्य धनसंयुक्तम् वैश्य का धन – ऐश्वर्यभाव – बोधक शब्दों से जैसे – वसुमान्, वित्तेश, विश्वम्भर, धनेश आदि , और शूद्रस्य तु शूद्र का जुगुप्सितम् रक्षणीय, पालनीय भावबोधक शब्दों से जैसे – सुदास अकिंचन नाम रखना चाहिए । अर्थात् व्यक्ति के वर्णसापेक्ष गुणों के आधार पर नामकरण करना चाहिए ।

अथवा ब्राह्मणस्य शर्मवद् स्यात् ब्राह्मण का नाम शर्मवत् – कल्याण, शुभ, सौभाग्य, सुख, आनन्द, प्रसन्नता भाव वाले शब्दों को जोड़कर रखना चाहिए । जैसे – देवशर्मा, विश्वामित्र, वेदव्रत, धर्मदत्त, आदि राज्ञः रक्षासमन्वितम् क्षत्रिय का नाम रक्षक भाव वाले शब्दों को जोड़कर रखना चाहिए जैसे – महीपाल, धनंज्जय , धृतराष्ट्र, देववर्मा, कृतवर्मा वैश्यस्य पुष्टिसंयुक्तम् वैश्य का नाम पुष्टि – समृद्धि द्योतक शब्दों को जोड़कर जैसे – धनगुप्त, धनपाल, वसुदेव, रत्नदेव, वसुगुप्त और शूद्रस्य शूद्र का नाम प्रेष्यसंयुक्तम् सेवकत्व भाव वाले शब्दों को जोड़कर रखना चाहिए जैसे – देवदास, धर्मदास, महीदास ।

अर्थात् व्यक्तियों के वर्णगत कार्यों के आधार पर नामकरण करना चाहिए ।

‘‘जैसे ब्राह्मण का नाम विष्णुशर्मा, क्षत्रिय का विष्णु वर्मा, वैश्य का विष्णुगुप्त और शूद्र का विष्णुदास, इस प्रकार नाम रखना चाहिये । जो कोई द्विज शूद्र बनना चाहे तो अपना नाम दास शब्दान्त धर ले ।’’

(ऋ० प० वि० ३४९)

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