अकारं चाप्युकारं च मकारं च प्रजापतिः । वेदत्रयान्निरदुहद्भूर्भुवः स्वरितीति च ।

(प्रजापतिः) परमात्मा ने अकारम् उकारं च मकारं ओ३म् शब्द के ‘अ’ ‘उ’ और ‘म्’ अक्षरों को (अ+ उ + म् – ओम्) (च) तथा (भूः भुवः स्वः इति) ‘भूः’ ‘भुवः’ ‘स्वः’ गायत्री मन्त्र की इन तीन व्याहृतियों को वेदत्रयात् निरदुहत् तीनों वेदों से दुहकर साररूप में निकाला है ।

‘‘जो अकार उकार और मकार के योग से ‘ओम्’ यह अक्षर सिद्ध है, सो यह परमेश्वर के सब नामों में उत्तम नाम है । जिसमें सब नामों के अर्थ आ जाते हैं । जैसा पिता – पुत्र का प्रेम – सम्बन्ध है, वैसे ही ओंकार के साथ परमात्मा का सम्बन्ध है । इस एक नाम से ईश्वर के सब नामों का बोध होता है ।’’

(द० ल० प० पृ० २३२)

‘‘अब तीन महाव्याहृतियों के अर्थ संक्षेप से लिखते हैं –

‘भूरिति वै प्राणः’ ‘यः प्राणयति चराचरं जगत् सः भूः स्वयंभूरीश्वरः’ जो सब जगत् के जीवन का आधार प्राण से भी प्रिय और स्वंयभू है उस प्राण का वाचक होके ‘भूः’ परमेश्वर का नाम है । ‘भुवरित्यपानः’ ‘यः सर्वं दुःखमपानयति सोऽपानः’ – जो सब दुःखों से रहित जिसके संग से जीव सब दुःखों से छूट जाते हैं, इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘भुवः’ है । ‘स्वरिति व्यानः’ ‘यो विविधं जगद् व्यानयति व्याप्नोति स व्यानः’ – जो नानाविध जगत् में व्यापक होके सबका धारण करता है, इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘स्वः’ है ।’’

(स० प्र० तृतीय समु०)

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