ब्रह्मारम्भेऽवसाने च पादौ ग्राह्यौ गुरोः सदा । संहत्य हस्तावध्येयं स हि ब्रह्माञ्जलिः स्मृतः

ब्रह्मारम्भे च अवसाने वेद पढ़ने के आरम्भ और समाप्ति पर सदा गुरोः पादौ ग्राह्यौ सदैव गुरू के दोनों चरणों को छूकर नमस्कार करे (२।४७) हस्तौ संहत्य अध्येयम् दोनों हाथ जोड़कर गुरू में पढ़ना चाहिये; सः हि ब्रह्मांज्जलिः स्मृतः इसी हाथ जोड़ने को ‘ब्रह्माज्ंजलि’ कहा जाता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *