केशान्तः षोडशे वर्षे ब्राह्मणस्य विधीयते । राजन्यबन्धोर्द्वाविंशे वैश्यस्य द्व्यधिके मतः

ब्राह्मण के सोलहवें (राजन्यबन्धोः द्वाविंशे) क्षत्रिय के बाईसवें वैश्यस्य वैश्य के (ततः द्वयधिके) उससे दो वर्ष अधिक अर्थात् चौबीसवें वर्ष में केशान्तः विधीयते केशान्त कर्म – क्षौर – मुंडन हो जाना चाहिए ।

‘‘अर्थात् इस विधि के पश्चात् केवल शिखा को रखके अन्य डाढ़ी, मूंछ और शिर के बाल सदा मुंडवाते रहना चाहिए अर्थात् पुनः कभी न रखना और जो शीतप्रधान देश हो तो कामचार है, चाहे जितना केश रखे । और जो अति उष्ण हो तो सब शिखा सहित छेदन करा देना चाहिये, क्यों कि शिर में बाल रहने से उष्णता अधिक होती है और उससे बुद्धि कम हो जाती है । डाढ़ी मूँछ रखने से भोजन पान अच्छे प्रकार नहीं होता और उच्छिष्ट भी बालों में रह जाता है ।’’

(स० प्र० दशम समु०)

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