प्राङ्नाभिवर्धनात्पुंसो जातकर्म विधीयते । मन्त्रवत्प्राशनं चास्य हिरण्यमधुसर्पिषाम् ।

पंसः बालक का जातकर्म जातकर्म संस्कार नाभिवर्धनात् प्राक् नाभि काटने से पहले विधीयते किया जाता है च और इस संस्कार में अस्य इस बालक को मन्त्रवत् मन्त्रोच्चारणपूर्वक हिरण्य – मधु – सर्पिषाम् सुवर्ण, शहद और घी अर्थात् सोने की शलाका से असमान मात्रा में शहद और घी को प्राशनम् चटाया जाता है ।

‘‘तत्पश्चात् घी और पधु दोनों बराबर मिलाके, जो प्रथम सोने की शलाका कर रखी हो उससे बालक की जीभ पर ‘‘ओ३म्’’ यह अक्षर लिखके ……………………………………घी और मधु को उस सोने की शलाका से बालक को नीचे लिखे मन्त्र से थोड़ा – थोड़ा चटाये ।’’

(सं० वि० जातकर्म संस्कार)

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