मातरं वा स्वसारं वा मातुर्वा भगिनीं निजाम् । भिक्षेत भिक्षां प्रथमं या चैनं नावमानयेत् ।

इन ब्रह्मचारियों को मातरं वा स्वसारम् माता या बहन से वा मातुः निजां भगिनीम् अथवा माता की सगी बहन अर्थात् सगी मौसी से च और या एनं न अवमानयेत् जो इस भिक्षार्थी का अपमान न करे उससे प्रथमं भिक्षां भिक्षेत् पहले भिक्षा मांगे ।

श्लोक २३ और २५ का भाव –

‘‘तत्पश्चात् ब्रह्मचारी यज्ञकुण्ड की प्रदक्षिणा करके कुण्ड के पश्चिम भाग में खड़ा रह के माता – पिता , बहन – भाई, मामा – मौसी, चाचा आदि से लेके जो भिक्षा देने में नकार न करें उनसे भिक्षा मांगे ।’’

(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)

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