प्रतिगृह्येप्सितं दण्डं उपस्थाय च भास्करम् । प्रदक्षिणं परीत्याग्निं चरेद्भैक्षं यथाविधि ।

ईप्सितं दण्ड प्रतिगृह्य ऊपर वर्णित दण्डों में अपने योग्य दण्ड धारण करके च और भास्करं उपस्थय सूर्य के सामने खड़ा होके अग्नि प्रदक्षिणं परीत्य यज्ञाग्नि की प्रदक्षिणा – परिक्रमा करके यथाविधि विधि- अनुसार (२।२४-२५) भैक्षं चरेत् भिक्षा मांगे ।

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