गार्भैर्होमैर्जातकर्म चौडमौञ्जीनिबन्धनैः । बैजिकं गार्भिकं चैनो द्विजानां अपमृज्यते

गाभैः गर्भकालीन – गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन होमैः हवनयुक्त संस्कारों से जातकर्म – चैल – मौज्जीनिबन्धनैः जातकर्म २।४ मुण्डन (२।१०), मेखलाबन्धन अर्थात् यज्ञोपवीत (२।११-४३) संस्कारों से द्विजानाम् द्विजातियों के बैजिकम् बीजसम्बन्धी – परम्परागत् पैतृक – मातृक संस्कारों से उत्पन्न होने वाले च और गार्भिकम् गर्भकाल में होने वाला एनः संस्कारजन्य दोष अपमृज्यते दूर हो जाता है अर्थात् इन संस्कारों के करने से बालकों के बुरे संस्कार मिटकर विशुद्ध संस्कार बनते हैं ।

जिस करके शरीर और आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त हो सकता है और सन्तान अत्यन्त योग्य होते हैं । अतः संस्कारों का करना सब मनुष्यों को अति उचित है ।

(सं० वि० भूमिका)

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