. ब्रह्मचारी नित्यम् प्रतिदिन उभे संध्ये प्रातः और सांय दोनों संध्या – कालों में शुचै देशे शुद्ध स्थान में आचम्य आचमन करके प्रयतः प्रयत्न – पूर्वक समाहितः एकाग्र होकर जप्यं जपन् उपासीत गायत्री का जप करते हुए उपासना करे ।
‘‘नित्य संध्योपासन………………………………………के पूर्व शुद्ध जल का आचमन किया करे ।’’
(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)