मनुष्य को चाहिए कि मात्रा स्वस्त्रा वा दुहित्रा माता, बहन अथवा पुत्री के साथ भी विविक्त + आसनः न भवेत् एकान्त आसन पर न बैठे या न रहे, क्यों कि बलवान् इन्द्रियग्रामः शक्तिशाली इन्द्रियां विद्वांसम् अपि विद्वान् – विवेकी व्यक्ति को भी कर्षति खींचकर अपने वश में कर लेती हैं ।
‘‘इस वाक्य का अर्थ – इन्द्रियाँ इतनी प्रबल हैं कि माता तथा बहनों के साथ रहने में भी सावधान रहना चाहिए ।’’
(पू० प्र० १५)