गुरोर्गुरौ सन्निहिते गुरुवद्वृत्तिं आचरेत् । न चानिसृष्टो गुरुणा स्वान्गुरूनभिवादयेत्

गुरू के गुरू से गुरूतुल्य आचरण

. गुरोः गुरौ सन्निहिते गुरू के भी गुरू यदि समीप आ जायें तो गुरूवत् वृत्तिम् आचरेत् उनसे अपने गुरू के समान ही आचरण करे च और स्वान् गुरून् अपने माता – पिता आदि गुरूजनों के आने पर गुरूणा अनिसृष्टः न अभिवादयेत् गुरू से आदेश पाये बिना अभिवादन न करे अर्थात् शिष्टता के नाते गुरू से पहले अनुमति लेकर उनके पास अभिवादन के लिए जाये ।

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