प्रतिवातेऽनुवाते च नासीत गुरुणा सह । असंश्रवे चैव गुरोर्न किं चिदपि कीर्तयेत् ।

. प्रतिवाते गुरू की ओर से शिष्य की ओर आने वाली हवा में च और अनुवाते शिष्य की ओर से गुरू की ओर जाने वाली हवा में गुरूणा सह न आसीत शिष्य गुरू के साथ न बैठे (च) तथा गुरोः असंश्रवे एव जहां गुरू को अच्छी प्रकार न सुनाई पड़े ऐसे स्थान में किंचित् अपि न कीत्र्तयेत् कुछ बात न करे ।

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