कार्ष्णरौरवबास्तानि चर्माणि ब्रह्मचारिणः । वसीरन्नानुपूर्व्येण शाणक्षौमाविकानि च । ।

ब्रह्मचारिणः तीनों वर्णों के ब्रह्मचारी आनुपूव्र्येण क्रमशः काष्र्णरौरववास्तानि चर्माणि आसन के रूप में बिछाने के लिए काला मृग, रूरूमृग और बकरे के चर्म को च तथा ओढ़ने – पहरने के लिए शाण- क्षौम आविकानि सन, रेशम और ऊन के वस्त्रों को वसीरन् धारण करें ।

‘‘एक – एक मृगचर्म उनके बैठने के लिए ….. देना चाहिये ।’’

(सं० वि० वेदारम्भः संस्कार)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *