आ हैव स नखाग्रेभ्यः परमं तप्यते तपः । यः स्रग्व्यपि द्विजोऽधीते स्वाध्यायं शक्तितोऽन्वहम्

वेदाध्ययन के लिए प्रयत्न करने का विधान एव उसका कारण तथा प्रशंसा

द्विजन्मा द्विजमात्र को विधिचोदितैः तपोविशेषैः च विविधैः व्रतैः शास्त्रों में विहित विशेष तपों ब्रह्मचर्यपालन, प्राणायाम, द्वन्द्वसहन आदि और विविध व्रतों (२।१४९-१९४ में प्रदर्शित) का पालन करते हुए कृत्स्नः वेदः सम्पूर्ण वेदज्ञान को सरहस्यः रहस्य पूर्वक अर्थात् गूढार्थज्ञान – चिन्तनपूर्वक अधिगन्तव्यः अध्ययन करके प्राप्त करना चाहिए ।

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