यथाकालं असंस्कृताः निर्धारित समय पर संस्कार न होने पर अतः ऊर्ध्वम् इस (२।१३) अवस्था के बीतने के बाद एते त्रयः + अपि ये तीनों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ही सावित्रीपतिताः सावित्री – यज्ञोपवीत से पतित हुए आर्यविगर्हिताः आर्य – श्रेष्ठ व्यक्तियों द्वारा निन्दित व्रात्याः भवन्ति ‘व्रात्या’ व्रत से पतित हो जाते हैं ।
‘‘अत ऊध्र्वं पतितसावित्रीका भवन्ति ।।६।। (आश्व० गृ० सू०)
यदि पूर्वोक्त काल में इनका यज्ञोपवीत न हो तो वे पतित मानें जावें ।’’
(सं० वि० उपनयन संस्कार)