यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृगः । यश्च विप्रोऽनधीयानस्त्रयस्ते नाम बिभ्रति ।

मूर्ख की निन्दा

. यथा काष्ठमयः हस्ती जैसे काठ का कठपुतला हाथी, वा यथाचर्ममयः मृगः जैसे चमड़े का बनाया हुआ मृग हो यः च अनधीयानः विप्रः वैसे बिना पढ़ा हुआ विप्र अर्थात् ब्राह्मण वा बुद्धिमान् जन होता है ते त्रयः नाम बिभ्रति उक्त वे हाथी, मृग और विप्र तीनों नाम मात्र धारण करते हैं ।

(सं० वि० वेदारम्भ सं०)

‘‘जो विद्या नहीं पढ़ा है वह जैसा काठ का हाथी, चमड़े का मृग होता है, वैसा अविद्वान् मनुष्य जगत् में नाम मात्र मनुष्य कहाता है ।’’

(स० प्र० दशम समु०)

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