आ षोदशाद्ब्राह्मणस्य सावित्री नातिवर्तते । आ द्वाविंशात्क्षत्रबन्धोरा चतुर्विंशतेर्विशः

ब्राह्मणस्य ब्राह्मण के बालक का आ – षोडशात् सोलह वर्षों तक क्षत्र – बन्धोः क्षत्रिय के बालक का आ – द्वाविंशात् बाईस वर्ष तक विशः वैश्य के बालक का आ – चतुर्विशतेः चौबीस वर्ष तक सावित्री न + अतिवर्तते यज्ञोपवीत का अतिक्रमण नहीं होता अर्थात् इन अवस्थाओं तक उपनयन संस्कार कराया जा सकता है ।

‘‘आषोडशात् ब्राह्मणस्यानतीतकालः ।।५।। आद्वाविंशात् क्षत्रियस्य, आचतुर्विशाद्वैश्यस्य ।।६।। आश्व० गृह्यसूत्र – ब्राह्मण के सोलह, क्षत्रिय के बाईस और वैश्य के बालक का चौबीस वर्ष से पूर्व – पूर्व यज्ञोपवीत होना चाहिये ।’’

(सं० वि० उपनयन संस्कार)

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