वेदपारगः आचार्यः वेद में पारंगत आचार्य विधिवत् विधिपूर्वक गायत्र्या गायत्री संस्कार – उपनयनसंस्कार से अस्य इसकी यां जातिम् उत्पादयति जाति – अर्थात् वर्ण या आत्मिक स्वरूप को बनाता है सा सत्य सा अजरा – अमरा वही इसकी वास्तविक जाति – वर्ण है, वही जाति शरीर जन्म की अपेक्षा क्षीण न होने वाली और स्थिर रहने वाली है अर्थात् शिक्षा – प्रदान करके निर्धारित किये गये वर्ण के संस्कार परजन्मों तक रहते हैं ।