ब्रह्मवर्चसकामस्य कार्यो विप्रस्य पञ्चमे । राज्ञो बलार्थिनः षष्ठे वैश्यस्येहार्थिनोऽष्टमे ।

इह ब्रह्मवर्चस – कामस्य इस संसार में जिसको ब्रह्मतेज – ईश्वर विद्या आदि का शीघ्र एवं अधिक प्राप्ति की कामना हो, ऐसे विप्रस्य ब्राह्मण के बालक का उपनयन संस्कार पंच्चमे कार्यम् पांचवे वर्ष में ही करा देना चाहिये । इह बलार्थिनः राज्ञः इस संसार में बल – पराक्रम आदि क्षत्रिय – विद्याओं की शीघ्र एवं अधिक प्राप्ति की कामना वाले क्षत्रिय बालक का षष्ठे छठे वर्ष में और इह + अर्थिनः वैश्यस्य इस संसार में धन – ऐश्वर्य की शीघ्र एवं अधिक कामना वाले वैश्य के बालक का अष्टमे आठवें वर्ष में उपनयन संस्कार करा देना चाहिये ।

‘‘जिसको शीघ्र विद्या, बल और व्यवहार करने की इच्छा हो और बालक भी पढ़ने में समर्थ हुए हों तो ब्राह्मण के लड़के का जन्म वा गर्भ से पांचवें, क्षत्रिय के लड़के का जन्म वा गर्भ से छठे और वैश्य के लड़के का जन्म वा गर्भ से आठवें वर्ष में यज्ञोपवीत करें ।’’

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