उपनीय तु यः शिष्यं वेदं अध्यापयेद्द्विजः । सकल्पं सरहस्यं च तं आचार्यं प्रचक्षते

आचार्य का लक्षण

यः उपनीय तु जो यज्ञोपवीत कराके सकल्पं च सरहस्यम् कल्पसूत्र और वेदान्तसहित शिष्यं वेदम् अध्यापयेत् शिष्य को वेद पढ़ावे तम् आचार्य प्रचक्षते उसको आचार्य कहते हैं ।

(द० ल० वे० पृ० ४)

‘‘जो ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य गुरू अपने शिष्य को यज्ञोपवीत आदि धर्म क्रिया कराने के बाद वेद को अर्थ और कलासहित पढ़ावे तो ही उसको आचार्य कहना चाहिए ।’’

(द० ल० शि० पृ० ८९)

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