एष सर्वः समुद्दिष्टः कर्मणां वः फलोदयः । नैःश्रेयसकरं कर्म विप्रस्येदं निबोधत । ।

यह (12/3-81) कर्मों के फल का उद्भव सम्पूर्ण रूप में तुमसे कहा ।

अब विद्वानों या ब्राह्मण आदि द्विजों के (निःश्रेयसकरं कर्म निबोधत-) मोक्षदायक कर्मों को सुनो ।

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