यादृशेन तु भावेन यद्यत्कर्म निषेवते । तादृशेन शरीरेण तत्तत्फलं उपाश्नुते

मनुष्य जैसी अच्छी या बुरी भावना से जैसा अच्छा या बुरा कर्म करता है, वैसे-वैसे ही शरीर पाकर उन कर्मों के फलों को भोगता है ।

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