तेऽभ्यासात्कर्मणां तेषां पापानां अल्पबुद्धयः । संप्राप्नुवन्ति दुःखानि तासु तास्विह योनिषु ।

फिर वे मन्दबुद्धि मनुष्य उन विषयों से उत्पन्न पापकर्मों को बारम्बार करते हैं, और उसके कारण पुनः पापकर्मों से प्राप्त होने वाली उन-उन योनियों में अर्थात् जिस पाप से जो योनि प्राप्त होती है (12/39-51) उसको प्राप्त करके इसी संसार में दुःखों को भोगते है ।

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