यत्कर्म कृत्वा कुर्वंश्च करिष्यंश्चैव लज्जति । तज्ज्ञेयं विदुषा सर्वं तामसं गुणलक्षणम् ।

जब अपना आत्मा जिस कर्म को करके, करता हुआ और करने की इच्छा से लज्जा, शंका और भय को प्राप्त होवें । तब जानों कि मुझ में प्रवृद्ध तमोगुण है ।

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