एवं यः सर्वभूतेषु पश्यत्यात्मानं आत्मना । स सर्वसमतां एत्य ब्रह्माभ्येति परं पदम्

इसी प्रकार समाधियोग से जो मनुष्य सब प्राणियों में परमेश्वर को देखता है वह सबको अपने आत्मा के समान प्रेमभाव से देखता है वही परमपद जो ब्रह्म-परमात्मा है उसको यथावत् प्राप्त होके सदा आनन्द को प्राप्त होता है ।

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