एतद्वोऽभिहितं सर्वं निःश्रेयसकरं परम् । अस्मादप्रच्युतो विप्रः प्राप्नोति परमां गतिम्

यह (12/83-115) मोक्ष देने वाले सर्वोत्तम कर्मों का विधान तुम ने कहा, विद्वान् द्विज इसको बिना छोड़े पालन करता हुआ उत्तम गति अर्थात् मुक्ति को प्राप्त कर लेता है ।

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