आर्षं धर्मोपदेशं च वेदशास्त्राविरोधिना । यस्तर्केणानुसंधत्ते स धर्मं वेद नेतरः । ।

जो मनुष्य ऋषिविहित धर्मोपदेश अर्थात् धर्म-शास्त्र का वेदशास्त्र के अनुकूल तर्क के द्वारा अनुसंधान करता है वही धर्म के तत्व को समझ पाता है, अन्य नहीं ।

अविहित धर्मों के ज्ञान की विधि-

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