अनाम्नातेषु धर्मेषु कथं स्यादिति चेद्भवेत् । यं शिष्टा ब्राह्मणा ब्रूयुः स धर्मः स्यादशङ्कितः

जो धर्मयुक्त व्यवहार, मनुस्मृति आदि में प्रत्यक्ष न कहे हो, यदि उनमें शंका होवे तो तुम जिसको शिष्ट, आप्त, विद्वान कहें उसी को शंकारहित कर्त्तव्य-धर्म मानो ।

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