अकामतः कृतं पापं वेदाभ्यासेन शुध्यति । कामतस्तु कृतं मोहात्प्रायश्चित्तैः पृथग्विधैः

अनिच्छापूर्वक किया गया पाप वेदाभ्यास से शुद्ध होता है—पाप के संस्कार नष्ट होकर आत्मा पवित्र होती है । आसक्ति में इच्छापूर्वक किया गया पाप अनेक प्रकार के प्रायश्चितों के करने से शुद्ध होता है ।

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