अकामतः कृते पापे प्रायश्चित्तं विदुर्बुधाः । कामकारकृतेऽप्याहुरेके श्रुतिनिदर्शनात् ।

कुछ विद्वान् अज्ञानवश किये गये पाप में प्रायश्चित करने को कहते है और कुछ विद्वान् वेदों में उल्लेख होने के कारण जान-कर किये गये पाप में भी प्रायश्चित करने को कहते हैं ।

अनुशीलन- यजु॰ 39/12 में प्रायश्चित का उल्लेख हुआ है— “निष्कृत्यै स्वाहा प्रायश्चित्यै स्वाहा भेषजाय स्वाहा । ”

अर्थात्- निवारण के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया, पापनिवारण के लिए सत्यक्रिया और (भेषजाय) सुख के लिये सत्यक्रिया का सदा प्रयोग करें” (म. दया. भाष्य)

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