अधर्मयुक्त आचरण करके मनुष्य जैसे-जैसे अपने पाप को लोगों से कहता है वैसे-वैसे सांप-केंचुली के समान उस अधर्म से-अपराध से मुक्त हो जाता है अर्थात् लोगों में उसके प्रति अपराधी होने की भावना समाप्त होती जाती है ।
अधर्मयुक्त आचरण करके मनुष्य जैसे-जैसे अपने पाप को लोगों से कहता है वैसे-वैसे सांप-केंचुली के समान उस अधर्म से-अपराध से मुक्त हो जाता है अर्थात् लोगों में उसके प्रति अपराधी होने की भावना समाप्त होती जाती है ।