एतैर्द्विजातयः शोध्या व्रतैराविष्कृतैनसः । अनाविष्कृतपापांस्तु मन्त्रैर्होमैश्च शोधयेत्

जिनका पाप क्रियारूप में प्रकट हो गया है, ऐसे द्विजातियों को इन पूर्वोक्त(11/211-225) व्रत्तों से शुद्ध करे, और जिनका पाप क्रिया रूप में प्रकट नहीं हुआ है अर्थात् अन्तःकरण में ही भावना उत्पन्न  हुई है, ऐसों को मन्त्र-जपों (11/225) और यज्ञों से शुद्ध करें अर्थात् मानसिक पापों की शुद्धि जपों एव यज्ञों= संध्योपासन-अग्निहोत्र आदि से होती है ।

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