महाव्याहृतिभिर्होमः कर्तव्यः स्वयं अन्वहम् । अहिंसा सत्यं अक्रोधं आर्जवं च समाचरेत् ।

प्रायश्चितकाल में प्रतिदिन प्रायश्चितकर्त्ता को स्वयं महाव्याहृतियों (भूः भुवः स्वः आदि मन्त्रों) से हवन करना चाहिए और अंहिसा, सत्य, क्रोधरहित रहना, कुटिलता न करना, इन बातों का पालन करे ।

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