दिवानुगच्छेद्गास्तास्तु तिष्ठन्नूर्ध्वं रजः पिबेत् । शुश्रूषित्वा नमस्कृत्य रात्रौ वीरासनं वसेत्

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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